Video - राम भगवान का वनवास: धर्म और त्याग की गाथा
आज हम जानेंगे राम भगवान के वनवास की कथा। अयोध्या का राजदरबार सजीव था। राजा दशरथ ने सिंहासन पर बैठकर कहा, "मेरा सपना था कि राम अयोध्या का युवराज बने।" जनता ने जयकारा लगाया, पर दशरथ ने हाथ उठाकर शांत किया, "पर मुझे रानी कैकेयी को दिया वचन निभाना होगा।"कैकेयी ने कहा, "पहला वरदान: भरत को युवराज बनाया जाए। दूसरा वरदान: राम को चौदह वर्षों के लिए वनवास भेजा जाए।" दरबार स्तब्ध हो गया। राम शांत खड़े रहे।दशरथ ने दुखी स्वर में कहा, "राम, मेरे पुत्र, तुम्हें वनवास जाना होगा।" राम ने सिर झुकाया, "पिताजी, मैं आदेश स्वीकार करता हूँ। आपका वचन मेरा धर्म है।"लक्ष्मण बोले, "भैया, मुझे भी साथ चलने दें।" राम ने कहा, "लक्ष्मण, हमें पिताजी का साथ देना है।"कौशल्या ने रोते हुए राम को गले लगाया, "पुत्र, तुम्हारा जाना दुखद है, पर तुम्हारी धर्मनिष्ठा पर गर्व है।" सीता बोलीं, "आप जहां जाएंगे, मैं भी साथ चलूंगी।"दशरथ ने कहा, "राम, भगवान तुम्हारी रक्षा करें।" राम, लक्ष्मण, और सीता ने वनवास स्वीकार किया।