Video - फजिर की नमाज़: आत्मा की सुबह की रोशनी
फजिर की नमाज़ की फज़ीलत को समझना हमें एक गहरी आध्यात्मिक यात्रा पर ले जाता है। इस्लामी विद्वानों के अनुसार, फजिर की नमाज़ का समय उस वक़्त का होता है जब रात का अंधेरा सुबह की रौशनी से मिल रहा होता है। यह समय न केवल प्रकृति के अद्भुत संगम का प्रतीक है, बल्कि इंसान के अंदरूनी संघर्ष और परिवर्तन का भी प्रतीक है। अबू हुरैरा (रज़ि.) से रिवायत है कि पैगंबर मुहम्मद (स.अ.व.) ने कहा, "फजिर की नमाज़ दो रकातें दुनिया और उसमें मौजूद सब चीज़ों से बेहतर हैं।" अब, सवाल यह उठता है कि क्यों? एक नज़रिए से देखा जाए तो, यह समय ब्रह्म मुहूर्त के समान है, जब आत्मा और मन विशेष रूप से संवेदनशील और शुद्ध होते हैं। दूसरी तरफ, कुछ लोग इसे अनुशासन और आत्म-नियंत्रण की परीक्षा मानते हैं। दोनों ही दृष्टिकोणों में सच्चाई है। फजिर की नमाज़ हमें न केवल अल्लाह के करीब लाती है, बल्कि हमें आत्म-संयम और अनुशासन की भी शिक्षा देती है। यह एक ऐसा समय है जब हम अपने अंदरूनी संघर्षों को पहचान सकते हैं और उन्हें अल्लाह की रहमत में छोड़ सकते हैं।