Video - फिलिप्पी के दरोगा की कहानी: उद्धार की राह
युनानी शहर फिलिप्पी के एक व्यक्ति ने कुछ इसी तरह का एक प्रश्न पौलुस और सीलास से किया था। हम इस व्यक्ति के बारे में कम से कम तीन बातों को जानते हैं: वह एक दरोगा था, वह एक अन्यजाति था, और वह बहुत ही ज्यादा हताशा था। वह आत्महत्या करने के बिन्दु तक पहुँच गया था जब पौलुस ने उसे ऐसा करने से रोका। और तब उस व्यक्ति ने पूछा था कि, "उद्धार पाने के लिए मैं क्या करूँ?" (प्रेरितों के काम 16:30)। सच्चाई यह है कि उस व्यक्ति के द्वारा पूछा गए प्रश्न यह दर्शाता है कि उसने उद्धार की आवश्यकता को पहचान लिया था – उसने तो स्वयं के लिए केवल मृत्यु को ही देखा था, और वह जानता था कि उसे सहायता की आवश्यकता थी। सच्चाई तो यह है कि उसके द्वारा पौलुस और सीलास की सहायता की मांग यह दिखाती है कि उसने विश्वास किया कि उनके पास उसका उत्तर था।उत्तर तेजी से और साधारण सा आता है: "प्रभु यीशु मसीह पर विश्वास कर, तो तू और तेरा घराना उद्धार पाएगा" (वचन 31)। यह प्रसंग आगे दिखाता है कि उस व्यक्ति ने विश्वास किया और वह परिवर्तित हो गया। उसका जीवन उस दिन से आगे भिन्नता को प्रदर्शित करने लगा। ध्यान दें कि उस व्यक्ति का मन परिवर्तन विश्वास ("भरोसे") के ऊपर आधारित था। उसे केवल यीशु में ही विश्वास करना था और किसी और में नहीं। उस व्यक्ति ने विश्वास किया कि यीशु ही परमेश्वर का पुत्र ("प्रभु") था और वो मसीह ("ख्रिष्ट") जो कि पवित्रशास्त्र को पूरा करता है। उसके विश्वास में ऐसा भरोसा भी सम्मिलित था कि यीशु उसके पापों के लिए मरा था और पुन: जी उठा था यही वह सन्देश था जिसे पौलुस और सीलास प्रचार कर रहे थे (देखें रोमियों 10:9-10 और 1 कुरिन्थियों 15:1-4)।मन परिवर्तन" का शब्दिक अर्थ "मुड़ने" से है। जब हम किसी एक दिशा की ओर मुड़ते हैं, तो हम आवश्यकता अनुसार किसी ओर से दूसरी ओर मुड़ गए हैं। जब हम यीशु की ओर मुड़ते हैं, तो हमें पाप से मुड़ना चाहिए। बाइबल पाप की ओर से मुड़ने को "पश्चाताप" और यीशु की ओर मुड़ने को "विश्वास" कह कर पुकारती है। इसलिए पश्चाताप और विश्वास एक दूसरे के पूरक हैं। दोनों अर्थात् पश्चाताप और विश्वास 1 थिस्सलुनीकियों 1:9 में संकेत दिए गए हैं – "तुम मूरतों से परमेश्वर की ओर फिरे।" एक मसीही विश्वासी अपने पीछे अपने पुराने तरीकों को और उस बस को जो झूठे धर्म से सम्बन्धित हो मसीहत में एक सच्चे मन परिवर्तन के परिणामस्