Video - रहस्यमयी मंदिर की अद्भुत कहानी
# पहाड़ों का खामोश राज (The Silent Secret of the Mountains) मंजूष अपने दोस्तों, अभिषेक और निशा के साथ हिमालय की एक सुनसान वादी में ट्रैकिंग पर निकला था. ये तीनों कॉलेज के दिनों से साथ थे और रोमांच के दीवाने. इस बार उन्होंने एक ऐसे दुर्गम रास्ते को चुना था, जिस पर कम ही लोग जाते थे. चारों ओर ऊंचे-ऊंचे पहाड़, घने जंगल और सन्नाटा. दूर-दूर कहीं कोई पक्षी का चहचाहट या झरने की रिमझिम सुनाई देती. पहले दो दिन तो सब कुछ ठीक रहा. उन्होंने खूबसूरत नज़ारे देखे, कैंप लगाया और रात को अलाव के सामने कहानियां सुनाईं. लेकिन तीसरे दिन मौसम बिगड़ गया. तेज हवाएं चलने लगीं और घना कोहरा छा गया. रास्ता भटकने का डर सताने लगा. जैसे-तैसे वो एक पुराने मंदिर तक पहुंचे. मंदिर छोटा था, लेकिन मजबूत दिखता था. दरवाजा खुला हुआ था, मानो उन्हें अंदर बुला रहा हो. रात बिताने के लिए उन्होंने मंदिर को ही चुना. अंदर का माहौल काफी दमघोटू था. धूल जमी हुई मूर्तियों और टूटी-फूटी दीवारों से एक अजीब सी ऊर्जा निकल रही थी. रात को सोने की कोशिश करते वक्त मंजूष को लगा किसी ने उसका नाम पुकारा. आंख खोलने पर उसने देखा, मंदिर के कोने में एक बूढ़ा साधु बैठा हुआ है. साधु के कपड़े फटे हुए थे और उसकी आंखें अंधेरे में चमक रही थीं. "आप कौन हैं?" मंजूष ने घबराते हुए पूछा. "मैं इस मंदिर का रक्षक हूं," साधु ने धीमे स्वर में जवाब दिया. "तुम लोगों को यहां नहीं आना चाहिए था." "लेकिन बाहर इतना तूफान है," अभिषेक बोला. "हमारे पास और कोई रास्ता नहीं था." साधु ने सिर हिलाया. "कुछ रास्ते ऐसे होते हैं, जिन पर नहीं चलना चाहिए. ये पहाड़ कई राज़ छुपाए हुए हैं." वो रात अजीब सी कटी. हर कुछ देर में किसी खटखटाहट की आवाज़ आती, मानो कोई दरवाजा खोलने की कोशिश कर रहा हो. सुबह होने पर साधु गायब था. उसकी जगह सिर्फ जमीन पर एक छोटा सा ताबीज़ पड़ा हुआ था. वो ताबीज़ चमक रहा था, मानो किसी अलौकिक शक्ति से भरा हो. ताबीज़ को जेब में रखकर वो तीनों आगे बढ़े. मौसम अब थोड़ा शांत हो गया था. कुछ घंटों की चढ़ाई के बाद वो एक पठार पर पहुंचे. वहां एक विशाल किला खड़ा था. वो किला पुराना था, उसकी दीवारें जर्जर हो चुकी थीं. जिज्ञासा से वो किले के अंदर घुसे.